• January to March 2024 Article ID: NSS8608 Impact Factor:7.67 Cite Score:150204 Download: 547 DOI: https://doi.org/ View PDf

    भीष्म साहनी के कथा साहित्य में सामाजिक सरोकार

      डॉ. अनुषा बंधु
        सहायक आचार्य (वि.सं.यो.) (हिन्दी) राजकीय महाविद्यालय, सेमारी (राज.)

शोध सारांश - वर्तमान समाज में कथा साहित्य अपनी लोकप्रियता के कारण साधुनिक साहित्य की अन्य विधाओं की अपेक्षा अधिक प्रतिष्ठित एवं प्रौढ विद्या के रूप में उभरकर सामने आया है। साहित्य और सभाज एक-दूसरे है पूरक है,एक का प्रभाव दूसरे पर दिखाई देना स्वाभाविक है। साहित्य को समाज के समाज को साहित्य के बगैर परिलक्षित कर पाना बेहद दुष्कर है।‘साहित्य समाज का दर्पण है’ और साहित्यकार इस दपर्ण का सजग,सचेत अंग।

आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी ने ‘साहित्य की महता’को लोकजागरण की चेतना से सम्बद्ध मानते हुए कहा है कि ‘साहित्य में जो शक्ति छिपी रहती है वह तोप, तलवार और बम के गोलों में भी नहीं पायी जाती। यूरोप में हानिकारिणी रूढ़ियों का उद्‌घाटन साहित्य ने ही किया,जातीय स्वातंत्र्य के बीज उसी ने बोए है... पोप की प्रभुता को किसने कम किया है?फ्रांस में प्रजा की सत्ता का उत्पादन और उन्नयन किसने किया है?पदाक्रान्त इटली का मस्तक किसने ऊँचा उठाया है?साहित्य ने,साहित्य ने,साहित्य ने। साहित्यकार समाज का सबसे संवेदनशील प्राणी होता है जो समाज की नित्य प्रति घटित होने वाली घटनाओं को उसके अनुकूल-प्रतिकूल प्रभावों एवं अनुभवों को आधार बनाकर अपनी सृजनमूलक इमारत खड़ी करता है ताकि समाज की विसंगतियों को अनावृत कर समाज का पथ प्रेम एवंअपनेपन से दीप्तिमान कर सके। ऐसे ही साहित्यकार भीष्म साहनी है जिन्होंने स्वातंत्र्योत्तर हिन्दी कथा साहित्य को समृद्ध किया। कथा साहित्य में अन्तर्विरोधों व जीवन के जकड़े मध्यवर्ग के साथ निम्नवर्ग की जिजीविषा को उजागर करने में उनकी जीवन्तता उन्हें अन्य साहित्यकारों में अग्रणी साबित करती है।