• July to September 2024 Article ID: NSS8757 Impact Factor:8.05 Cite Score:90856 Download: 425 DOI: https://doi.org/ View PDf

    शिवमूर्ति: समकालीन कथा साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर

      डॉ. प्रिया सिंह
        असिस्टेंट प्रोफेसर, करामत हुसैन मुस्लिम गर्ल्स पी0जी0 कॉलेज, लखनऊ (उ.प्र.)

प्रस्तावना - समकालीन हिन्दी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर माने जाने वाले शिवमूर्ति जी ने अपनी रचनाओं में मजदूरों, स्त्रियों, किसानों, ग्रामीण जनजीवन व दलितों की दयनीय स्थिति, उन पर होने वाले शोषण व अत्याचारों और इन सबके प्रतिकार स्वरूप उत्पन्न विरोध व विद्रोह की आग व जातिवादी विमर्श को बहुत ही प्रभावी एवं प्रमाणिक ढंग से अभिव्यक्त किया है, जिसके माध्यम से हम पाते हैं कि समाज में एक नवजागृति व सामाजिक चेतना का प्रादुर्भाव होता है। शिवमूर्ति ऐसे कथाकार हैं जो समाज के उस यथार्थ को रचते हैं, जहाँ तक दूसरों की दृष्टि कम ही पहुँचती है। यथार्थपरक आख्यान उनकी रचनाओं के कथानक व घटनाक्रम में ही समाहित नहीं होता बल्कि उनकी भाषा, उनके पात्रों के चरित्र, उनके संवाद आदि प्रत्येक स्थान पर दिखाई देता है। शिवमूर्ति के साहित्य में केवल दलितों व पिछड़ों की ही चिन्ता नहीं है न ही केवल दलितों के सरोकारों की बात की गई है, वरन् उनके सरोकार सभी जातियों, समुदायों के गरीबों से जुड़े हुए हैं। वर्गीय चिन्ता तथा नारी विमर्श उनके लेखन में प्रबल रूप में उपस्थित है। उनकी अधिकांश कहानियों के केन्द्रों में स्त्रियाँ ही हैं किन्तु आधुनिकता व उŸार आधुनिकता के बीच झूलने वाले शहरी वातावरण की तुलना में ग्रामीण परिवेश में जीने वाली गरीब व प्रताड़ित स्त्री की स्थिति उन्हें ज्यादा चिंतित करती है।