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October to December 2024 Article ID: NSS8932 Impact Factor:8.05 Cite Score:9474 Download: 136 DOI: https://doi.org/ View PDf
घरेलू एवं कामकाजी महिलाओं के बालक बालिकाओं के नैतिक मूल्यों का तुलनात्मक अध्ययन
निशा यादव
शोधार्थी, शा.क.रा.क. महाविद्यालय, ग्वालियर (म.प्र.)डॉ. कल्पना शर्मा
विभागध्यक्ष, जे.सी. मिल कन्या स्नातकोत्तर महाविद्यालय, ग्वालियर (म.प्र.)
प्रस्तावना- परिवार बच्चों की प्रथम
पाठशाला होती है और माता उसकी प्रथम गुरू। जन्म के पश्चात् बच्चे खाना-पीना, हँसना-बोलना,
चलना-फिरना, खेलना-कूदना, पढ़ना-लिखना आदि समस्त गतिविधियाँ परिवार में ही सीखते हैं।
घर में ही बालक बालिकाओं का शारीरिक, मानसिक, क्रियात्मक, संवेगात्मक, भाषा व सामाजिक
विकास होता है। वे विभिन्न परिस्थितियों में समायोजन करना सीखते हैं। माता पिता व परिवार
के सदस्यों की आदतें, उनके निर्णय लेने के तरीके व अन्य लोगों के प्रति उनका आचरण आदि
नैतिक मूल्यों की शिक्षा देते हैं। घरेलू महिलाएँ अपने बच्चों के सम्पर्क में अधिक
रहती हैं इसलिये बच्चों के आचरण व नैतिक मूल्यों पर उनका प्रभाव अधिक पड़ता है। प्रत्येक
कार्य, निर्णय में वे उनकी मदद लेते हैं। कामकाजी महिलाओं 6-8 घंटे लगभग घर से बाहर
रहना पड़ता है। इसलिए उनके बच्चे परिवार के अन्य सदस्य व आया के सम्पर्क में अधिक रहते
हैं। माता की अनुपस्थिति बच्चों को अपने कार्य स्वयं करने तथा निर्णय स्वयं लेने के
लिये प्रेरित करती है। अधिक आवश्यकता पड़ने पर ही बच्चे परिवार के अन्य सदस्यों से मदद
लेते हैं। इस प्रकार घरेलू महिलाओं के बच्चों की तुलना में कामकाजी महिलाओं के बच्चे
जल्दी आत्मनिर्भर होने लगते हैं। उन्हें निर्णय लेने, समायोजन करने के अवसर अधिक मिलते
हैं। वे प्रयास व भूल से बहुत कुछ स्वयं ही अनुभव प्राप्त कर लेते हैं।














