• January to March 2025 Article ID: NSS8952 Impact Factor:8.05 Cite Score:7903 Download: 124 DOI: https://doi.org/ View PDf

    महिला कथाकारों के उपन्यासों में मानवीयता

      डॉ. राजेश श्रीवास
        सहा. प्राध्यापक (हिन्दी) सेठ फूलचंद अग्रवाल स्मृति महा. नवापारा (राजिम) रायपुर (छ.ग.)

प्रस्तावना- साहित्य मनाव-मानस की विशिष्ट एवं रमणीय अनुभूति है। ‘‘साहित्य का पहला अंग है -भाव, जिसके लिए कल्पना का योगदान अपेक्षित है, परन्तु कल्पना ऐसे जो अनुभूति के आधार पर निर्मित हो।‘’ इसी यथार्थानुभूति की विशिष्ट व्यंजना करने वाला साहित्यिक रूप-विधान कथा (उपन्यास, कहानी) साहित्य है। इसीलिए इसमें ह्नदय को स्पंदित करने की शक्ति होती है। मानव-चेतना समाज-सापेक्ष हुआ करती है और उपन्यास, कहानी-जो मानव चेतना का संवाहक है-नितांत समाज-निरपेक्ष हो ही नही सकता, वह तो जीवन की परिकल्पनात्मक अभिव्यक्ति है, जिसके द्वारा जीवन के सौंदर्यात्मक और आनंदात्मक पक्ष का उद्घाटन होता है। ‘‘साहित्य के सृजन में साहित्यकार के संस्कार, पारिवारिक वातावरण उसके मानस-पटल पर अंकित प्रभाव तथा इस प्रभाव के द्वारा निर्मित विचारधारा और मान्यताओं का महत्वपूर्ण स्थान होता है।‘’ क्योंकि किसी भी साहित्यकार का जीवन तथा साहित्य संस्कार, अनुभूतिजन्य मान्यताओं एवं विचारधाराओं का उनके साहित्य पर अवश्य प्रभाव पड़ता है। इसीलिए किसी भी साहित्यकार के साहित्य को समझने के लिए उसके जीवन एवं व्यक्तित्व से भली-भाँति परिचित होना अत्यंत आवश्यक है, क्योंकि उसका संपूर्ण जीवन किसी न किसी रूप में उसकी रचनाओं में अवश्य प्रतिबिम्बित होता है।