• January to March 2025 Article ID: NSS8956 Impact Factor:8.05 Cite Score:25402 Download: 224 DOI: https://doi.org/ View PDf

    भारतीय ज्ञान परम्परा में स्त्री विमर्श

      श्रीमती अनीता अग्रवाल
        पूनमचंद गुप्ता वोकेशनल महाविद्यालय, खंडवा (म.प्र.)

शोध सारांश- स्त्री विमर्श समकालीन साहित्य की महान उपलब्धी है। यह महिलाओ को मिले लोकतान्त्रिक अधिकार शिक्षा और स्वावलम्बन का परिणाम है, इसका श्रेय सिर्फ उन्ही को जाता है। इस विमर्श में नारी जीवन के उन पक्षों को प्रस्तुत किया है जिनकी चर्चा से साहित्य और समाज विज्ञान में परहेज किया जाता था। स्त्री विमर्श सिर्फ भारत तक ही सीमित नही है अपितु पूरी दुनिया इसके दायरे में है जहाँ स्त्रियां अपनी पीड़ा और समस्या को ही नही व्यक्त कर रही बल्कि अपनी शक्ति की समीक्षा भी कर रही है। भारतीय चिंतन को नई धारा देने में स्त्री विमर्श ने अपनी विशिष्ट भूमिका निभाई है।काल और परिस्थितयों द्वारा उत्पन्न चुनौतियों को समकालीन स्त्री शक्ति के अवसरों में बदल दिया है। वर्तमान सन्दर्भ में आधुनिक स्त्री ने जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में अपनी सफलता के दम पर अपनी पहचान बनाई है। स्त्री की बदलती सोच परिवार, समाज, धर्म, राजनीति, राष्ट्र और संस्कृति पर नये सिरे से सोचने को प्रेरित किया है। अंग्रेजी साहित्य में भी भारतीय लेखकों द्वारा स्त्री विमर्श पर विचार किया गया है। स्त्री विमर्श एक ऐसा विमर्श है जो जाति, धर्म, वर्ग, वंश, प्रीत और देश आदि से अलग हटकर है, जहां स्त्री अपने ऊपर हो रहे अत्याचार, शोषण, उत्पीडन,उपेक्षा आदि का विरोध करती है। स्त्री विमर्श को पश्चिम से आई एक अवधारणा के रूप में देखा और विचार किया जाता है। स्त्री के स्वभाव, मन और उसकी सम्वेदनाओ को समझने के लिए स्त्री विमर्श एक महत्वपूर्ण दृष्टि है। बदलते हुए समाज में स्त्री के पारंपरिक मंडन को तोड़ने की पहल स्त्री विमर्श है ताकि स्त्री को समानता का अधिकार सम्मान अस्तित्व और स्वतंत्रता प्राप्त हो सके।