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January to March 2025 Article ID: NSS8962 Impact Factor:8.05 Cite Score:11519 Download: 150 DOI: https://doi.org/ View PDf
न्याय की देवी: भंगाराम माई (बस्तर के विशेष संदर्भ में)
डॉ. (श्रीमती) बसंत नाग
सहायक प्राध्यापक (समाजशास्त्र) भानुप्रतापदेव शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय कांकेर, जिला-उत्तर बस्तर, कांकेर (छ.ग.)प्रो. एन. आर. साव
सहायक प्राध्यापक (हिंदी) भानुप्रतापदेव शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय कांकेर, जिला-उत्तर बस्तर, कांकेर (छ.ग.)
प्रस्तावना- प्रत्येक क्षेत्र के जनजातियों
की अलग-अलग सामाजिक, सांस्कृतिक एवं धार्मिक मान्यतायें होती हैं, जो उनके विशिष्टि
पहचान को परिलक्षित करती है। जनजाति समुदाय में मृतकों की पूजा देवतुल्य मानकर की जाती
है, आत्माओं का विशिष्ट स्थान होता है। धर्म और जादू-टोना कर मान्यता उनके समाज की
आस्थाओं की पूर्ति नहीं करता बल्कि प्रकृति से भी जोड़कर रखता है। धर्म और जादू-टोना
शारीरिक और मानसिक आस्थाओं की पूर्ति के साथ-साथ उपयोगी साधन के रूप में समाज में स्थापित
प्रचलित मान्यताओं को पूर्नजीवित करती है। धार्मिक शक्तिओं को जब तक नहीं माना जाता,
तब तक व्यक्ति और समाज के लिये हितकारी नहीं होता। धर्म लाभदायक और विनाशकारी सिद्ध
हो सकता है। जनजाति समाज में जादू-टोना स्थानीय बीमारियों एवं उनके उपचार के स्वरूप
का निर्धारण भी करता है। जीववाद एक जनजाति के जीवन में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। स्थानीय
समस्याओं को दूर करने के लिये सार्थक मार्ग प्रशस्त करतें हैं।














