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January to March 2025 Article ID: NSS8973 Impact Factor:8.05 Cite Score:15094 Download: 172 DOI: https://doi.org/ View PDf
वेद, उपनिषद एवं भारतीय साहित्य में महिलाओं की भूमिका: श्रीमद्भगवद्गीता के विशेष संदर्भ में
भावना तिवारी
शोधार्थी (समाज कार्य)देवी अहिल्या विश्वविद्यालय, इंदौर (म.प्र.)
शोध सारांश- भारतीय दर्शन और साहित्य में नारी की भूमिका सदैव अत्यंत महत्वपूर्ण रही है। वैदिक युग में महिलाओं को शिक्षा, दर्शन और आध्यात्मिक चिंतन में समान अधिकार प्राप्त थे, जिसके प्रमाण गार्गी, मैत्रेयी और लोपामुद्रा जैसी विदुषियों के विचार-विमर्श से मिलते हैं। श्रीमद्भगवद्गीता, जो केवल एक धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि एक दार्शनिक जीवन दृष्टि है, महिलाओं के आध्यात्मिक अधिकारों और मोक्ष प्राप्ति की संभावनाओं को समान रूप से स्वीकार करती है। गीता में वर्णित कर्मयोग, ज्ञानयोग और भक्ति योग के सिद्धांत न केवल पुरुषों के लिए, बल्कि स्त्रियों के लिए भी उतने ही प्रासंगिक हैं, जिससे यह स्पष्ट होता है कि आध्यात्मिक उन्नति में लिंग कोई बाधा नहीं है।
इस शोध पत्र में गीता के स्त्री-सशक्तिकरण संबंधी विचारों का विश्लेषण करते हुए भारतीय महिला दार्शनिकों के योगदान को भी समझने का प्रयास किया गया है। साथ ही, यह अध्ययन आधुनिक संदर्भ में गीता के संदेश को नारी सशक्तिकरण, आत्मनिर्भरता और सामाजिक विकास के लिए एक प्रेरणा स्रोत के रूप में प्रस्तुत करता है। आज जब महिलाएँ शिक्षा, विज्ञान, राजनीति और समाज सेवा में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं, तब गीता में वर्णित सिद्धांत अधिक प्रासंगिक हो जाते हैं। यह शोध पत्र इस विचार को प्रमाणित करने का प्रयास करता है कि भारतीय दर्शन में नारी केवल श्रद्धा का नहीं, बल्कि शक्ति और ज्ञान का भी प्रतीक रही है, और गीता का संदेश आज भी महिलाओं के उत्थान और सशक्तिकरण के लिए उतना ही उपयोगी है जितना प्राचीन काल में था।
शब्द कुंजी-वेद,
उपनिषद, गीता, नारी सशक्तिकरण, भारतीय दर्शन, महिला दार्शनिक, भक्ति आंदोलन।
