• October to December 2024 Article ID: NSS9009 Impact Factor:8.05 Cite Score:8025 Download: 125 DOI: https://doi.org/ View PDf

    भारत में महिला मानवाधिकार: दशा एवं दिशा

      डॉ. जे.के. संत
        सहायक प्राध्यापक (राजनीतिशास्त्र) शासकीय तुलसी महाविद्यालय, अनूपपुर (म.प्र.)

प्रस्तावना-निश्चित रूप से 21 वी शताब्दी के प्रथम दशक के अन्तिम चरण में हम संयुक्त राष्ट्र संघ के तत्कालीन महा सचिव श्री कुर्त वाॅल्डहाइम द्वारा अभिव्यक्त उन विचारों से अपनी बात प्रारम्भ करना चाहेगें जो उन्होंने 1975 को अन्तर्राष्ट्रीय महिला वर्ष घोषित करने के समय प्रस्तुत किए थे। इसमें उन्होने कहा था कि ‘‘यह वर्ष मनाने की घोषणा ऐसे समय में की गई है जबकि संसार के व्यक्ति समानता को अच्छी तरह से समझनें लगें है। स्त्री-पुरूष समानता का दर्जा मौलिक मानवाधिकारों की दृष्टि से ही नहीं अपितु सामाजिक आर्थिक विकास व विश्व शांति के लिए भी आवश्यक है आज सम्पूर्ण जगत में नारीवाद का आन्दोलन चल रहा है। इरान, ईराक, इण्डोनेशिया, पाक एवं फिलीपीन्स के साथ-साथ कुवैत अरब,ओमान कतरा तथा यमन में महिलाधिकार की हवाओं ने महिलाओं के लिए राजनीति का दरवाजा खोल दिया है। भारत भी इस बयार से अछूता नहीं है। यद्यपि भारतीय समाज की मूल वैचारिक दृष्टि अभी भी पारम्परागत दायरे से पूरी तरह बाहर नहीं निकल पाई है। तथापि यदि हम पश्चिमी संसार को छोड़ दे तो कह सकते है की एशिया के अनेक देशों की तुलना में भारत में महिलाओं में अधिक राजनीतिक चेतना देखी जा सकती है।