• January to March 2025 Article ID: NSS9035 Impact Factor:8.05 Cite Score:20686 Download: 202 DOI: https://doi.org/ View PDf

    अथर्ववेद में गोधन चिन्तन

      डॉ. नारायण सिंह राव
        सहायक आचार्य (संस्कृत) ज.रा.ना. राजस्थान विद्यापीठ विश्वविद्यालय, उदयपुर (राज.)
      अंकिता शर्मा
        शोधार्थी (संस्कृत) ज.रा.ना. राजस्थान विद्यापीठ विश्वविद्यालय, उदयपुर (राज.)

प्रस्तावना-    एकैकयैषा सृष्टया संबभूव यत्र गा असृ जन्त भूतकृतो विश्वरूपाः।

प्रभु सृष्टि के आरंभ का ज्ञान देते है। यह वेदवाणी सब पदार्थों का निरुपण करती हुई हमारा शुभ करती है। विश्व के सबसे प्राचीनतम ग्रंथों में वेदों का स्थान सर्वोपरि है। वेद भारतीय संस्कृति और परंपरा के आधार रहे हैं। यह जीवन जीने की एक ग्रंथावली के रूप में एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक स्थानांतरित होते रहे हैं। वेदों में विभिन्न प्रकार की विषयवस्तु का समावेश रहा है। भारतीय चिंतन केवल मानव जीवन तक ही सीमित नहीं रहा है अपितु यह पशु पक्षियों में भी आत्मसाक्षात्कार करता रहा है। इसी आत्म साक्षात्कार के कारण  गाय को माता के रूप में भारतीय संस्कृति ने स्वीकार कर लिया। इसे स्वीकार करने का एक प्रमुख कारण जिस प्रकार माता अपने वात्सल्य से बच्चे का पालन पोषण करती है, उसी प्रकार गाय भी अपने दूध से मानव को नवजीवन प्रदान करती है।