• April to June 2025 Article ID: NSS9141 Impact Factor:8.05 Cite Score:5487 Download: 103 DOI: https://doi.org/ View PDf

    आँसू का शैलीवैज्ञानिक अध्ययन

      डॉ. निशा शुक्ला तिवारी
        प्राध्यापक (हिंदी) आदित्य इंजीनियरिंग कॉलेज, सतना (म.प्र.)

प्रस्तावना- संसार में सब चीजें एक सी नहीं हैं; उनमें भिन्नता है। यही भिन्नता सब चीज़ों को एक दूसरे से विशेष बनाती है। सब मनुष्य भिन्न हैं, इसीलिए सब मनुष्य विशेष हैं। हर-एक मनुष्य के कार्य करने का तरीक़ा अलग है। इसी 'तरीके' को शैली कहा गया है। प्रत्येक व्यक्ति के बोल-चाल, उठने-बैठने, हाव-भाव जैसी छोटी-छोटी गतिविधियों में भी इस शैली का अंतर स्पष्ट तौर पर देखा जा सकता है। वास्तव में शैली की इन्हीं भिन्नताओं से हम अलग-अलग व्यक्तियों से अलग-अलग तौर से व्यवहार कर पाते हैं। हम उन्हें अलग-अलग रूप में पहचान पाते हैं। शैली की यही भिन्नता व्यक्ति की भाषा में परिलक्षित होती है और भाषा के माध्यम से कविता में उतर जाती है। इसीलिए अलग-अलग कवियों की कविताओं में हमें अलग-अलग शैली देखने को मिलती है। भक्ति काल में कबीर, सूर और तुलसी की कविता की कुछ पंक्तियाँ पढ़ कर ही बताया जा सकता है कि कौन सी रचना किसकी है। छायावाद के कवियों में भी यह शैली की भिन्नता स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है। प्रसाद के स्वर और पंत के स्वर में भेद स्पष्ट रूप से हो सकता है। या निराला और महादेवी की ही कविता को पढ़ कर ही यह शैली भेद बताया जा सकता है। यही नहीं एक ही कवि की भिन्न-भिन्न रचनाओं में भिन्न-भिन्न शैलियाँ देखने को मिलती हैं। प्रसाद की आँसू की शैली, कामायनी की शैली से भिन्न है। यह भिन्नता कितनी है, किन आधारों पर है, शैली के कौन से तत्व दो रचनाओं, या दो कवियों को भिन्न साबित करते हैं इसी का अध्ययन शैलीविज्ञान करता है। छायावाद के महत्वपूर्ण कवि जयशंकर प्रसाद की कृति 'आँसू' को आधार बना कर यहाँ शैलीवैज्ञानिक अध्ययन प्रस्तुत किया जा रहा है।