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January to March 2025 Article ID: NSS9161 Impact Factor:8.05 Cite Score:49 Download: 8 DOI: https://doi.org/ View PDf
भारत में जनजातीय अधिकारों पर संवैधानिक विमर्शः एक ऐतिहासिक पुनरावलोकन और समकालीन प्रासंगिकता
राहुल रोत
शोधार्थी (राजनीति विज्ञान) मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर (राज.)
प्रस्तावना-
भारतीय
संविधान, जो भारत के सामाजिक-राजनीतिक संरचना का प्रमुख आधारस्तंभ है, ने अपने निर्माण के
प्रारंभिक चरण से ही देश के जनजातीय
समुदायों (अनुसूचित जनजातियों) के अधिकारों, पहचान और विकास से संबंधित मुद्दों पर गहन चिंतन
और विमर्श को समाहित किया है। संविधान सभा की बहसों और विभिन्न समितियों की
रिपोर्टों में इन समुदायों की विशिष्ट आवश्यकताओं, उनके ऐतिहासिक शोषण, और उन्हें राष्ट्र की
मुख्यधारा में समाहित करने की चुनौतियों पर विस्तार से चर्चा की गई थी। इन बहसों
का परिणामस्वरुप ही पांचवीं और छठी अनुसूची, अनुच्छेद 244, तथा जनजातीय सलाहकार परिषदों
जैसे विशेष संवैधानिक प्रावधानों के रूप में सामने आया, जिनका उद्देश्य इन समुदायों
के पारंपरिक रीति रिवाज, पारंपरिक जीवन शैली, संस्कृति और भूमि अधिकारों
का संरक्षण सुनिश्चित करते हुए उनके समावेशी विकास को गति देकर उनके कल्याण और
समग्र विकास की नींव रखनी थी।














