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October to December 2024 Article ID: NSS9164 Impact Factor:8.05 Cite Score:2936 Download: 75 DOI: https://doi.org/ View PDf
प्लेटो का न्याय सिद्धांत
रोहित
(राजनीति विज्ञान) वार्ड नंबर 11, अनुपगढ (राज.)
शोध सारांश- प्लेटो ग्रीक यूनानी विचारक था जिसने पहली बार न्याय (उस समय के विद्वानों में) को आत्मिक गुण कहा और उसके पूरे न्याय सिद्धान्त में इसी बात के इर्द-गिर्द पुरा कृम चलता है। जैसे प्लेटो ने व्यक्ति के तीन आन्तरिक गुण बताए विवेक, साहस क्षुदा, तृष्णा इन तीन गुणों के आधार पर ही प्लेटो ने समाज को तीन वर्गों में विभाजित किया जिनमें विवेक की प्रधानता होगी वे दार्शनिक राजा जिनमें साहस की प्रधानता होगी, वे सैनिक तथा जिनमें तृष्णा लालच की प्रधानता होगी उन्हें उत्पादक वर्ग में रखा है ताकि सभी वर्ग अपनी क्षमतानुसार कार्य का संचालन न्यायपूर्ण तरीके से कर पाएं और प्लेटो ने न्याय को स्पष्टतः परिभाषित भी किया है कि न्याय सिद्धान्त व्यक्ति की आत्मा का गुण है। प्लेटो न्याय को इतनी प्राथमिकता देत है कि उसने धन और पत्नीयां का साम्यवाद तक कर दिया क्योंकि इससे एक न्याय पूर्ण राज्य की स्थापना की जा सके। प्लेटो कहता है कि जब राजा के परिवार नहीं होगा तो उसके अन्दर लालच नहीं होगा और समस्त प्रजा को अपना परिवार समझेगा और किसी प्रकार का भेदभाव नहीं करेगा यदि धन भी संगृहित करने का अधिकार देता है तो भी राजा भ्रष्ट हो जायेगा इस लिये राजा को धन रखना निषेध कर दिया अर्थात प्लेटों राज्य के आवश्यक तत्वों में न्याय को सर्वोपरि रखना चाहता है क्योंकि प्लेटों अपने गुरू सुकरात के साथ हुए अन्याय से झुब्ध था इसी कारण प्लेटो ने दार्शनिक राजा की संकल्पना की जो न्यायप्रिय एवं उदार हो।
शब्द कुंजी- न्याय, गुण, विवेक, साहस, दार्शनिक,
रिपब्लिक, स्वार्थ कर्त्तव्य, समाज, विधि आदि।














