• April to June 2025 Article ID: NSS9228 Impact Factor:8.05 Cite Score:11 Download: 3 DOI: https://doi.org/ View PDf

    जनजातिय महिलाओं की सामाजिक आर्थिक स्थिति

      हेमलता डांगी
        शोधार्थी, पेसिफिक विश्वविद्यालय, उदयपुर (राज.)

प्रस्तावना-  देश में जनजातिय महिलाओं की स्थिति आजादी के 75 साल पहले हो जाने के दौरान भी आज वर्तमान समय में बहुत दयनीय स्थिति है। शिक्षा, स्वास्थ्य, आर्थिक स्थिति और सामाजिक मान्यताओं के प्रति परिवर्तन की आवश्यकता है। लेकिन इस विशाल और अनगिनत विविधता वाले देश में परिवर्तन का अंश नगण्य है। संविधान के अनुच्छेद 342 के तहत भारतीय जनजातिय महिलाओं को पुरूषों के समान ही अधिकार दिये हैं, अत्याचारों में दबी उनकी दयनीय जीवन स्थिति को रूपान्तरित करने और सामाजिक, आर्थिक और विधिक  पहचान बनाने के लिए कल्याणकारी मान्यताएँ दी है फिर भी उनकी विकास की स्थिति चिंतनीय है।समय के साथ-साथ प्रत्येक समाज में परिवर्तन हुये लेकिन जनजातिय महिलाओं की स्थिति में दिन-प्रतिदिन गिरावट हो रही है। उनमें गरीबी, अंधविश्वास, अशिक्षा, यौन उत्पीड़न, ऋणी, पारिवारिक, सामाजिक, बुराई, वेश्यापन की स्थिति आज भी मौजुद है, इसका मुख्य बिंदु अंधविश्वास निर्धनता है। किसी भी समाज के निर्माण में महिलाओं की भूमिका मुख्य होती है। महिलाओं को संपत्ति का अधिकार नहीं मिलता जनजातिय क्षेत्र में डाकन प्रथा, डायन प्रथा प्रचलित है। जनजातिय समाज में महिला और पुरूष असमानता पायी जाती है। जनजातिय महिलाएँ प्रकृति पूजक होती है। पुरूष खेत में हल चलाता है जिसमें महिलाएँ भाग लेती है। घर के सभी कार्यों में महिलायें महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।