• July to September 2024 Article ID: NSS9285 Impact Factor:8.05 Cite Score:16 Download: 4 DOI: https://doi.org/ View PDf

    जनजातीय स्वतंत्रता संग्राम में क्रांतिकारी शहीद छितुसिंह किराड़ का योगदान का विश्लेषण

      डॉ. एच. डुडवे
        सहायक प्राध्यापक (अर्थशास्त्र) प्रधानमंत्री कॉलेज ऑफ एक्सीलेंस क्रांतिकारी शहीद छितुसिंह किराड़ शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, अलीराजपुर (म.प्र.)

शोध सारांश- उन्नीसवीं सदी के आसपास अंग्रेजों को हमारे देश में राज करते हुए दो सौ साल बीत चुके थे। उनके शोषण और अत्याचार ने व्यापक रूप धारण कर लिया था छल कपट से अपना राज चला रहे थे। अधिकत्तर राजाओं ने अंग्रेजों की ताकत के सामन घुटने टेक दिये थे। परन्तु कुछ वीर ऐसे थे जिन्होने हार नहीं मानी और आखरी दम तक विरोध करते रहे। ऐसे ही वीरों में से एक था छितुसिंह किराड़ मध्यप्रदेश के अलीराजपुर के पास के सौरवा गांव के वीर स्वतंत्रता सेनानी थे, यह ऐसा समय था जब जनजातीय समाज पर अटूट अत्याचार और शोषण होता था। 1889 में पुरे क्षेत्र में ऐ जानलेवा अकाल पड़ा। भूखमरी के कारण बहुत लोग मर रहे थे, किन्तु राजा के तरफ से लोगों कोई मद्द नही की गई। एक तरफ जहां जनजातीय समाज के लिए खाने के लाले पडे हुए थे और अंग्रेजों शासन जनता से लगान वसुलते थे। ब्रिटिश शासन और स्थानीय जमींदारों के अत्याचारों के विरूद्ध संघर्ष किया। इस संघर्ष के कारण वे अपने भीलों की एक सेना तैयार करके बाजारों में गोदामों से अनाज लुटना शुरू कर जैसे- नानपुर, छकतला, भाभरा आदि गांवों में लुटना शुरू किया और लुटा हुआ अनाज सब लोगों के बीच बांट दिया करता था। ब्रिटिश शासन अनेक पकड़ेन के लिए कई प्रयास किए और अंततः विश्वसघात के कारण वे गिरफ्तार कर लिया गया। ब्रिटिश सरकार अनेक अमानवीय यातनाएँ दी गई, लेकिन वे झुके नहीं। अंततः उन्हें शहीद कर दिया गया। उनका विद्रोह से जनजातीय समाज में स्वतंत्रता की चेतना जगाई और आगे के जनजातीय आंदोलनों को प्रेरित किया।

शब्द कुंजी- छितुसिंह किराड, जनजातीय, स्वतंत्रता संग्राम, ब्रिटिश शासन, आन्दोलन।