• October to December 2024 Article ID: NSS9286 Impact Factor:8.05 Cite Score:481 Download: 29 DOI: https://doi.org/ View PDf

    जनजातीय समुदाय के विकास में संस्थागत बैंकों की भूमिका (अलीराजपुर जिले के जोबट विकासखण्ड के संदर्भ में)

      डॉ. एच. डुडवे
        सहायक प्राध्यापक (अर्थशास्त्र) प्रधानमंत्री कॉलेज ऑफ एक्सीलेंस क्रांतिकारी शहीद छितुसिंह किराड़ शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, अलीराजपुर (म.प्र.)

प्रस्तावना - विकास के प्रारम्भ से ही कृषि लोगों की आजीविका का प्रमुख साधन रही है। आज भी कृषि विश्व की अधिकांश जनसंख्या का प्रमुख व्यवसाय तथा आय का सबसे बड़ा साधन  है। विकासशील देशों में प्रधान व्यवसाय होने के कारण कृषि आय का सबसे बड़ा स्त्रोत, रोजगार एवं जीवनयापन का प्रमुख साधन, औद्योगिक विकास एवं विदेशी व्यापार का आधार है। कृषि इन देशों की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। कृषि विकास के सोपान पर चढ़कर ही विश्व के विकसित राष्ट्र आज आर्थिक विकास के शिखर पर पहुंच सके हैं। इग्लैंड, जर्मनी, रूस तथा जापान आदि देशों के विकास में कृषि ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई तथा तीव्र औद्योगीकरण के लिए सुदृढ़ आधार प्रदान किया। यही कारण है कि प्राचीन काल से लेकर आज तक के विचारकों ने कृषि विकास पर पर्याप्त बल दिया है। आर्थिक विचारों के इतिहास पर यदि ध्यान दिया जाए तो स्पष्ट होता है कि प्राचीन भारतीय समाज में कृषि की अत्यधिक महत्व प्रदान किया जाता था। भूमि और कृषि प्राचीन आर्य संस्कृति के आधार स्तम्भ है। भारतीय संस्कृति में पृथ्वी को माता के पवित्र सम्बन्ध से सम्बन्धित किया गया है। यहां कृषि फर्म को प्रथम, वाणिज्य को द्वितीय सेवा कार्य को तृतीय स्थान प्रदान किया गया है। प्राचीन यूनानी विचारकों कृषि व्यवसाय को विशेष महत्व प्रदान किया था। प्राकृतिक अवस्था सम्बन्धी खोज के दौरान प्रकृतिवादियों ने ऐसे सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया जिनके कारण कृषि की महत्ता पर्याप्त बढ़ गई। उनका विश्वास था कि कृषि ही समाज की सम्पत्ति उत्पन्न करने वाली तथा उत्पादक है और इसके अतिरिक्त समस्त व्यवसाय वाणिज्य, व्यापार तथा यातायात आदि अनुत्पादक है ।