• July to September 2025 Article ID: NSS9306 Impact Factor:8.05 Cite Score:216 Download: 18 DOI: https://doi.org/10.63574/nss.9306 View PDf

    वन्या कहानी संग्रह में आदिवासी स्त्री चरित्र के जीवन का यथार्थ चित्रण

      हिमांशु नागदा
        शोधार्थी (हिंदी) तुलनात्मक भाषा एवं संस्कृति अध्ययनशाला, देवी अहिल्या विश्वविद्यालय, इंदौर (म.प्र.)
      डॉ. विजयलक्ष्मी पोद्दार
        प्राध्यापक एवं विभागाध्यक्ष (हिंदी) एम.के.एच.एस. गुजराती गर्ल्स कॉलेज, इंदौर (म.प्र.)

शोध सारांश- आदिवासी स्त्री भारतीय समाज का एक ऐसा वर्ग जिसके लिए स्वतंत्रता, समानता और न्याय जैसी आधुनिक लोकतांत्रिक अवधारणाएँ आज भी कल्पना लोक के विषय है। लेखिका ने अपने संग्रह में आदिवासी स्त्री की अस्मिता से जुड़े विभिन्न प्रश्नों को कहानी के माध्यम से व्यक्त करने का प्रयास किया है। स्त्री मन की त्रासदी, घुटन व अस्मिता की रक्षा हेतु प्रयत्नरत एवं पुरुष प्रधान समाज के तले दबते व्यक्तित्व को झेलती स्त्री का यथार्थ चित्रण संग्रह में बखूबी किया गया है। मेरे शोध पत्र में मनीषा कुलश्रेष्ठ की वन्या कहानी संग्रह की आदिवासी स्त्री के जीवन में बिलखते संघर्ष की यथार्थता की पड़ताल करने का प्रयास हुआ है। जहां स्त्री अपने स्वाभिमान की लड़ाई वर्षों से लड़ती आ रही है, उसने अपना सर्वस्व श्रम, मजदूरी और ममत्व में ही निकाल दिया है। भेदभाव, अंधविश्वास और अशिक्षा के अंधेरे में वह अपने अस्तित्व के लिए लड़ते दिखाई दे रही हैं। लेखिका का यह नवीनतम संग्रह आदिवासी स्त्री जगत के विभिन्न ज्वलंतशील मुद्दों को उठाता है। सुमिता के स्वावलंबी होने, कुरजां द्वारा आत्मरक्षा करने, ग़ज़ाला और लुबना द्वारा कला के क्षेत्र में नारी के लिए समाज की बदलती सोच की उम्मीदें रखना, सुरमन और प्रिश्का का अपनी मातृभूमि के लिए संघर्ष करना, अनचाहे जीवन पथ में मिति का स्वाभिमानी बनना तथा लीलण के यौन शोषण व बेनु के एथलीट खिलाड़ी बनने के संघर्ष को यथार्थ धरातल पर मोतियों की भांति बिखेरता लेखिका का ये संग्रह बड़ा मार्मिक बन पड़ा है। शिक्षा, आधुनिकता व भौतिकता से दूर होने के कारण आदिवासी स्त्री परंपरागत स्त्री की तरह ही पितृसत्तात्मक व्यवस्था के साये में जीने को अभिशप्त है।

शब्द कुंजी-आदिवासी, समाज, स्त्री, साहित्य, यथार्थता, संघर्ष, शोषण, आत्मनिर्भर, कला, सम्पत्ति, असुरक्षा, अस्मिता, गरीबी, असहाय।