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July to September 2024 Article ID: NSS9309 Impact Factor:8.05 Cite Score:114 Download: 13 DOI: https://doi.org/ View PDf
सांगलिया धूणी (सीकर)के संतो का इतिहास और सामाजिक क्षेत्र में योगदान का अध्ययन
सन्दीप कुमार बाबल
सहायक आचार्य (इतिहास ) राजकीय महाविद्यालय, आहोर (जालोर) (राज.)
शोध सारांश- संतो की महिमा अपरंपार है।
संत परमार्थ का कार्य करके समाज को नई दिशा देते हैं। परमार्थ का अर्थ है कि संत सज्जन
व्यक्ति का पर्याय है जो कि दूसरों की भलाई के लिए अपना जीवन समर्पित कर देता है।साधु
और संत अपने अलख निरंजन को प्राप्त करने के लिए साधनाएं और तपस्या करते हैं और इनसे
प्राप्त शक्तियों से सामाजिक उत्थान और परोपकार
का कार्य भी करते हैं।
मत्स्यपुराण
के अनुसार, “ब्राह्मण ग्रन्थ और वेदों के शब्द, ये देवताओं की निर्देशक मूर्तियां हैं,
जिनके अंतः करण में इनके और ब्रह्म का संयोग बना रहता है, वह संत कहलाते हैं।”
अर्द्ध
ऋचैः उक्थानाम् रूपम् पदैः आप्नोति निविदः।
प्रणवैः
शस्त्राणाम् रूपम् पयसा सोमः आप्यते।
अर्थात्
जो संत वेदों के अर्ध वाक्यों को पूरा करता है, आंशिक वाक्यों को स्रोतों के रूप में
प्राप्त करता है, जैसे शस्त्रों को चलाना जानने वाला उनका पूर्ण रूप से प्रयोग करता
है ऐसे ही पूर्ण संत सत्य को समझकर सोमरस (दिव्य ज्ञान) प्राप्त करते हैं।
साधु
चरित सुभ चरित कपासु। नीरस बिसद गुनमय फल जासु।
जो
सही दुःख पर परछिद्रा दुरावा। बन्दनीय जेहि जग जस पावा।।
मलिक
मुहम्मद जायसी भी अपने पद्मावत काव्य में ईश्वर के स्वरूप का वर्णन करते हैं
अलख
अरूप अबरन सो कर्ता, वह सब सो सब ओहि सो बरता।
प्रग़ट
गुपत सो सरब बियापी, धरमी चिन्ह चिन्ह नहीं पापी।।3
अर्थात् वह सृष्टिकर्ता किसी से लिखा नहीं जाता, वह रूप, रंग से रहित है। वह सब में व्यवहार कर रहा है। वह प्रकट या गुप्त सब में समाया है, केवल धर्मात्मा उसे पहचानते सकते है, पापी व्यक्ति नहीं।
शब्द कुंजी-परमार्थ,
ब्रह्म, साधक, धूणी, संगत, सत्संग, सतगुरू, पीठाधीश्वर, समाधि, सतलोक, अलख।














