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April to June 2025 Article ID: NSS9348 Impact Factor:8.05 Cite Score:4 Download: 1 DOI: https://doi.org/ View PDf
डॉ. भीमराव अम्बेडकर का महिला मुक्ति विमर्श
नरेन्द्र सिंह पंवार
शोधार्थी, मोहनलाल सुखाडिया विश्वविद्यालय, उदयपुर (राज.)
प्रस्तावना- अम्बेडकर आजादी के संघर्ष के
दौरान सत्ता हस्तांतरण का सवाल,
स्वाधीन भारत का स्वरूप और उसमें जनता की नियति, आमजन की
वास्तविक सामाजिक और आर्थिक मुक्ति जैसे सवालों पर शीर्ष नेतृत्व के साथ हुए संवाद, बहस
और विवाद में यह स्पष्ट हो चुका था कि महज राजनैतिक आजादी से इस देश की जनता को
विशेष रूप से महिलाओं को सामंती उत्पीड़न से मुक्ति नहीं दिलाई जा सकती है। डॉ.
अम्बेडकर ने भारत में स्त्रियों की पराधीनता और जाति आधारित पितृसत्तात्मक जकड़न
की कठोरता के इतिहास को एक साथ जोड़कर देखा। ब्राह्मणवादी वर्चस्व की शक्तियों
द्वारा वर्णव्यवस्था को मजबूत और दीर्घजीवी बनाने की प्रकिया में स्त्रियों को
उनके नैसर्गिक अधिकारों से वंचित करके उन्हें दास की श्रेणी में ला दिया गया।
स्त्री के अधिकारों और स्वच्छंदता पर प्रतिबंध लगाये बिना जाति व्यवस्था को कड़ाई
से लागू कर पाना संभव नहीं था क्योंकि वर्ण-व्यवस्था का निर्धारण सजातीय विवाह से
होता है और सजातीय तथा बहिर्गोत्रीय विवाह संस्था को अमल में लाये बिना वर्ण नामक
श्रेणी को बंद जाति में तब्दील नहीं किया जा सकता।














