• April to June 2025 Article ID: NSS9350 Impact Factor:8.05 Cite Score:1 Download: 0 DOI: https://doi.org/ View PDf

    डॉ. भीमराव अम्बेडकर के विचार - दलितों के विशेष संदर्भ में

      सत्यनारायण सिंह शेखावत
        सहायक आचार्य, राजकीय कला महाविद्यालय, गरबाडा, दाहोद (गुजरात)

शोध सारांश-  डॉ. भीमराव अम्बेडकर महामानव थे। वे एक सच्चे देशभक्त थे तभी उन्होंने धर्म परिवर्तन हेतु अनेकानेक प्रलोभनों को ठुकरा दिया। वह हिन्दु समाज द्वारा स्थापित सामाजिक व्यवस्था से काफी असंतुष्ट थे और उनमें सुधार की मांग करते थे ताकि सर्वधर्म सम्भाव पर आधारित समाज की स्थापना की जा सके। भारत में उनका जीवन सामाजिक सुधार के श्रेष्ठतम कार्य को समर्पित था। वे एक ऐसे समाज सुधारक थे जो मात्र भाषणों तक ही अपने को सीमित करने के बजाय स्वयं अपने जीवन और कार्यों से सामाजिक रूढिवादिता, जातिप्रथा और अस्पृश्यता को हटाने में जीवनभर लगे रहे। उन्होंने राजनीति के बजाय सामाजिक सुधार के क्षेत्र में कार्य करने को प्राथमिकता प्रदान की। उनका विश्वास था कि आर्थिक और राजनीतिक मामले सामाजिक न्याय के लक्ष्य की प्राप्ति के बाद निपटाये जाने चाहिए। अम्बेडकर का विचार था कि आर्थिक विकास सभी सामाजिक समस्याओं का समाधान कर देगा। जातिवाद हिन्दुओं की मानसिक दासता की अभिव्यक्ति है। इस प्रकार के जातिवाद के पिशाच / बुराई के निवारण के बिना कोई वास्तविक परिवर्तन नहीं लाया जा सकता। हमारे समाज मे क्रांतिकारी बदलाव के लिए सामाजिक सुधार पहली शर्त है। सामाजिक सुधारों में परिवार व्यवस्था में सुधार और धार्मिक सुधार भी शामिल है। अम्बेडकर ने भारतीय समाज में महिलाओं की गिरती स्थिति की कटु आलोचना की उनका मानना था कि महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार मिलना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि हिन्दूधर्म में महिलाओं को सम्पति के अधिकार से वंचित रखा गया है। हिन्दू कोड बिल जो उन्होंने तैयार करवाया था उन्होंने यह ध्यान रखा कि महिलाओं को भी सम्पति में एक हिस्सा मिलना चाहिए। उन्होंने अस्पृश्यों को संगठित करते समय अस्पृश्य समुदाय की महिलाओं को आगे आने के लिए सदैव आहवान किया कि वे राजनीतिक और सामाजिक आंदोलनों में भाग लें।

शब्द कुंजी-दलित, हिन्दु समुदाय, अस्पृश्यता, जाति प्रथा, वर्ण व्यवस्था, जातिवाद, सामाजिक सुधार, सामाजिक न्याय, धार्मिक सुधार।