• July to September 2025 Article ID: NSS9355 Impact Factor:8.05 Cite Score:22 Download: 2 DOI: https://doi.org/10.63574/nss.9355 View PDf

    पर्यटन विकास में सांस्कृतिक विरासत की भूमिका

      डॉ. राम सिंह धुर्वे
        सहायक प्राध्यापक (भूगोल) शासकीय स्नातक महाविद्यालय, नैनपुर, जिला-मण्डला (म.प्र.)

शोध सारांश- पर्यटन आज विश्व अर्थव्यवस्था और सामाजिक-सांस्कृतिक विकास का महत्वपूर्ण क्षेत्र बन चुका है। इसमें सांस्कृतिक विरासत की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। सांस्कृतिक विरासत को दो भागों में बाँटा जा सकता है- भौतिक (स्मारक, मंदिर, किले, शिल्प, स्थापत्य) और अभौतिक (लोकगीत, नृत्य, त्योहार, परंपराएँ, भोजन, भाषा) ये तत्व न केवल किसी क्षेत्र की ऐतिहासिक पहचान को दर्शाते हैं बल्कि पर्यटन के प्रमुख आकर्षण भी बनते हैं। भारत जैसे बहुसांस्कृतिक देश में सांस्कृतिक पर्यटन का विशेष महत्व है। ताजमहल, खजुराहो, अजंता-एलोरा, वाराणसी और अमृतसर जैसे स्थल देश की विविध सांस्कृतिक धरोहर के उदाहरण हैं। इन स्थलों के कारण न केवल विदेशी पर्यटन आकर्षित होते हैं, बल्कि स्थानीय समुदाय को रोजगार, हस्तशिल्प और कला के विकास के अवसर भी मिलते हैं। सांस्कृतिक पर्यटन से आर्थिक लाभ के साथ-साथ सांस्कृतिक संरक्षण और अंतर्राष्ट्रीय सांस्कृतिक आदान-प्रदान को भी बढ़ावा मिलता है। इसमें चुनौतियाँ भी हैं जैसे वाणिज्यीकरण, सांस्कृतिक क्षरण और विरासत स्थलों पर दबाव। अतः सतत् पर्यटन की रणनीति से ही संतुलित विकास संभव है। सांस्कृतिक विरासत पर्यटन की आत्मा है जो न केवल क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था को गति देती है बल्कि समाज को अपनी जड़ों से जोड़ती है।

शब्द कुंजी- सांस्कृतिक पर्यटन, सांस्कृतिक विरासत।