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July to September 2025 Article ID: NSS9360 Impact Factor:8.05 Cite Score:128 Download: 13 DOI: https://doi.org/ View PDf
श्रीमद्भगवद्गीता में योग
इन्दु पटेल
शोध छात्रा (संस्कृत एवं प्राच्य भाषा विभाग) डॉ. सी. व्ही. रमन विश्वविद्यालय करगी रोड, कोटा, बिलासपुर (छ.ग.)प्रो. वेदप्रकाश मिश्र
शोध निर्देशक (संस्कृत एवं प्राच्य भाषा विभाग) डॉ. सी.व्ही. रमन विश्वविद्यालय करगी रोड, कोटा, बिलासपुर (छ.ग.)
शोध सरांश-गीता सुगीता कर्तव्या किमन्यैः
शास्त्रसंग्रहैः।
या स्वयं पद्मनाभस्य मुखपद्माद्विनिःसृता।।
वाराहपुराण में कहा गया है कि ‘‘मैं गीता के आश्रय में रहता हॅूं गीता मेरा श्रेष्ठ घर है। गीता के ज्ञान का सहारा लेकर ही मैं तीनों लोकों का पालन करता हॅू।‘’ श्रीमद्भगवद्गीता की गणना प्रस्थानत्रय (उपनिषद्, ब्रह्मसूत्र, भगवद्गीता) में की जाती है। इसमें अर्जुनविषादयोग, सांख्ययोग, कर्मयोग, ज्ञानकर्मसन्न्यासयोग ,कर्मसन्न्यासयोग, आत्मसंयमयोग, ज्ञानविज्ञानयोग, अक्षरब्रह्मयोग, राजविद्याराजगुह्ययोग,विभूतियोग, विश्वरुपदर्शनयोग, भक्तियोग, क्षेत्रक्षेत्रज्ञविभागयोग, गुणत्रयविभागयोग, पुरुषोत्तमयोग, दैवासुरसम्पद्विभागयोग, श्रद्धात्रयविभागयोग और मोक्षसन्न्यासयोग नामक अठारह अध्याय है। ज्ञानयोग, कर्मयोग, ध्यानयोग, भक्तियोग बुद्धियोग आदि का जगह-जगह प्रयोग होने के बावजूद सांख्य और कर्म निष्ठा का विभिन्न स्थलों पर इसका क्या वास्तविक अर्थ है। इसका विवरण प्रस्तूत आलेख में दिया गया है।
शब्द कुंजी- ज्ञानयोग, कर्मयोग, ध्यानयोग, भक्तियोग बुद्धियोग ।
