-
July to September 2025 Article ID: NSS9388 Impact Factor:8.05 Cite Score:13 Download: 3 DOI: https://doi.org/ View PDf
जनजातियों के प्रवास के कारण और प्रभावों का अध्ययन (मध्यप्रदेश के झाबुआ जिले के विशेष संदर्भ में)
कपिल डामर
पीएच.डी. शोधार्थी (समाजकार्य) डॉ. बी. आर. अम्बेडकर सामाजिक विज्ञान विश्वविद्यालय, डॉ. अम्बेडकर नगर (महू) जिला इदौर (म.प्र.)
शोध सारांश- आधूनिक भारत में तेजी से बढ़ती हुई जनसंख्या व बेरोेजगारी
के कारण जनजातियां अपनी आजीविका चलाने के लिए अपने मूल स्थानों से शहरों की ओर रोजगार
की तलाश में प्रवास कर रहे है। ग्रामिण जनजातिय समुदायों में यह प्रक्रिया पहले से
ही चली आ रही है कि उनके परिवारों में कमाने वाले एक या दो व्यक्ति होते है तथा उन
पर आश्रित सदस्यों की संख्या अधिक है जिनकी मूल स्थानांे पर रहकर बुनियादी सुख-सुविधाएँ
उपलब्ध कराना कठिन होता है। ऐसी परिस्थिति में उनके परिवारों से किसी-न-किसी वयस्क
व अवयस्क सदस्यों को रोजगार पाने के लिए शहरों में प्रवास करना अनिवार्य हो जाता है,
जिससे वे अपने परिवारों में होने वाले आवश्यक कार्य को व्यवस्थित रूप से संचालित कर
सके।
आजादी
के छः दशक बाद भी आज भारत में बहुल जनजाति समाज कहे जाने वाले वर्गो की सामाजिक-आर्थिक
स्थिति बहुत दयनीय है। हमारे समाज में जाति व्यवस्था का अभिशाप आज भी निम्न वर्गो के
विकास के रास्ते में सबसे बड़ी समस्या है। वर्तमान में आर्थिक और सामाजिक विषमताओं की
खाईयां घटने की बजाय और बढ़ती जा रही है।
भारत
एक विकासशील देश है। विकास का अर्थ हमारे देश के प्रत्येक व्यक्ति के जीवन की मूलभूत
आवश्यकताओं जैसे रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा, स्वास्थ्य एवं मनोरंजन की सुविधाएं तथा
जीविका के लिए रोजगार के साधन उपलब्ध करवाना। किन्तु यह बहुत दुःख की बात है कि आज
हमारे देश को आजादी के 78 वर्ष होने जा रहे है लेकिन यह बात केवल शोध का विषय बनकर
रह गई है या विचारों के रूप में पढ़ने-सुनने को मिलती है, जबकि वास्तविकता तो इससे कोषों
दूर है। इन विचारों को परिणित करने के लिए हमें भारत की नीवं अर्थात् ग्रामीण और आदिवासी
क्षेत्रों पर ध्यान देना होगा क्योंकि कई वर्षो से इन क्षेत्रों के लोगो की मूलभूत
आवश्यकताएं पूरी नहीं हो पा रही है। जनजातियों को इन मूलभूत आवश्यकताओं की अत्यधिक
जरूरत है। क्योंकि हमारे देश का 68.3 प्रतिशत भाग ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में
निवास करते है एवं 50 प्रतिशत जनसंख्या गरीबी रेखा के नीचे अपनी संस्कृति में लिप्त
रहकर जीवनयापन कर रही है।
जनजातिय
प्रवास के दो पहलू हो सकते है।
1. वे पहलू जो जनजतियों समूह को बाहर की ओर धकेलते
है, जैसे सामाजिक, आर्थिक शोषण, भुखमरी, बाढ़ व सूखे जैसी प्राकृतिक विपदाओं आदि।
2. वे पहलू जो जनजातियों समूह को अपनी ओर खींचते है जैसे रोजगार के बेहतर अवसर व अधिक मजदूरी जिनके कारण बहुत सी जनजाति प्रवासी बन जाती है।
शब्द कुंजी - प्रवास, अशिक्षा,
रोजगार, गरीबी, स्वास्थ्य ।
