• October to December 2024 Article ID: NSS9391 Impact Factor:8.05 Cite Score:176 Download: 17 DOI: https://doi.org/ View PDf

    भारत में किशोर न्याय के संवैधानिक और मानवाधिकार आयाम

      श्रीमती प्रीती बुंदेला
        शोधार्थी, महाराजा छत्रसाल बुंदेलखंड विश्वविद्यालय, छतरपुर (म.प्र.)
      डॉ. राम सिंह पटेल
        सह-प्राध्यापक, पं. मोतीलाल नेहरू विधि महाविद्यालय, छतरपुर (म.प्र.)

शोध सारांश-  किशोर न्याय, एक प्रगतिशील और मानवीय कानूनी व्यवस्था की आधारशिला के रूप में, बच्चों के कल्याण और संरक्षण के प्रति राष्ट्र की प्रतिबद्धता को दर्शाता है। भारत में, संवैधानिक दृष्टिकोण और मानवाधिकार दायित्व मिलकर कानून का उल्लंघन करने वाले किशोरों और देखभाल एवं संरक्षण की आवश्यकता वाले बच्चों के समाधान हेतु रूपरेखा तैयार करते हैं। यह शोधपत्र भारत में किशोर न्याय के संवैधानिक और मानवाधिकार आयामों का अन्वेषण करता है, और उन कानूनी प्रावधानों, न्यायिक व्याख्याओं और अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं का विश्लेषण करता है जिन्होंने किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 के विकास को प्रभावित किया है। यह किशोर अपराधों से निपटने में सुधार और निवारण के बीच संतुलन की भी जाँच करता है, विशेष रूप से 2012 के दिल्ली सामूहिक बलात्कार मामले के बाद, जिसने प्रमुख विधायी सुधारों को जन्म दिया। अध्ययन का निष्कर्ष है कि जहाँ भारत के संवैधानिक और अंतर्राष्ट्रीय दायित्व पुनर्वास और पुनर्एकीकरण पर आधारित बाल-केंद्रित दृष्टिकोण को अनिवार्य बनाते हैं, वहीं कार्यान्वयन में लगातार आने वाली कमियाँ, सामाजिक-आर्थिक कमज़ोरियाँ और प्रणालीगत सीमाएँ वास्तविक किशोर न्याय की प्राप्ति को चुनौती देती रहती हैं।

शब्द कुंजी-किशोर न्याय, मानवाधिकार, भारतीय संविधान, पुनर्वास, बाल अधिकार, किशोर न्याय अधिनियम 2015।