• October to December 2025 Article ID: NSS9436 Impact Factor:8.05 Cite Score:11 Download: 3 DOI: https://doi.org/ View PDf

    कहावतों की यात्रा: हर 20 कोस पर बदलती बोली में भारतीय सांस्कृतिक चेतना का विश्लेषण

      डॉ. दीपा जोशी
        प्रोफेसर, प्रबंधन विभाग (पीजी) श्री वैष्णव प्रबंधन एवं विज्ञान संस्थान, इंदौर (म.प्र.)

शोध सारांश-  भारतीय भाषाई परंपरा अपनी विविधता और सांस्कृतिक गहराई के लिए विश्वभर में अद्वितीय है। भारत में प्रचलित कहावतें केवल भाषा का व्यावहारिक उपकरण नहीं हैं, बल्कि वे जीवन-दर्शन, सामाजिक अनुभव, और सांस्कृतिक मूल्यों की वाहक भी हैं। "हर 20 कोस (is an ancient Indian unit of distance, roughly equivalent to forty miles) पर बदलती बोली और हर 40 कोस* पर बदलता पानी" जैसी कहावत भारतीय भाषाई सांस्कृतिक परिदृश्य की जीवंत अभिव्यक्ति है। यह शोध-पत्र संकल्पनात्मक रूप में यह अध्ययन करता है कि कैसे भाषाई विविधता के भीतर कहावतें सांस्कृतिक परिवर्तनशीलता, क्षेत्रीय पहचान, सामाजिक दृष्टिकोण और जीवन के व्यावहारिक अनुभवों को प्रकट करती हैं। यह अध्ययन अंतःविषय दृष्टिकोण अपनाते हुए भाषा-विज्ञान, नृविज्ञान और सांस्कृतिक अध्ययन को जोड़ता है, जिससे यह स्पष्ट हो सके कि बदलती बोलियों में कहावतें केवल शब्द-समूह नहीं, बल्कि ज्ञान-परंपरा की सतत धारा हैं।भारत के विभिन्न क्षेत्रोंउत्तर, दक्षिण, पूर्व, पश्चिम और मध्यकी कहावतों का तुलनात्मक विश्लेषण यह दर्शाता है कि किस प्रकार कृषि, व्यापार, पारिवारिक जीवन, नैतिकता और सामाजिक संबंधों पर आधारित अनुभव अलग-अलग भाषिक रूपों में व्यक्त किए जाते हैं। यह शोध यह स्थापित करता है कि कहावतें केवल भाषाई उपकरण नहीं हैं, बल्कि वे सामाजिक अनुकूलनशीलता, सांस्कृतिक निरंतरता और सामूहिक चेतना की अभिव्यक्ति हैं। बदलती बोलियों में कहावतों का रूपांतरण भारतीय समाज की गतिशीलता और परिवर्तनशीलता को दर्शाता है। अतः यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि कहावतें भारत की सांस्कृतिक धारा की जीवित स्मृतियाँ हैं, जो भाषा और संस्कृति के बीच पुल का कार्य करती हैं।

शब्द कुंजी -बोली, कहावत, सांस्कृतिक परिवर्तनशीलता, भाषाई विविधता, भारतीय संस्कृति।