• July to September 2024 Article ID: NSS8931 Impact Factor:8.05 Cite Score:6951 Download: 116 DOI: https://doi.org/ View PDf

    घरेलू एवं कामकाजी महिलाओं के बालक बालिकाओं के समायोजन का तुलनात्मक अध्ययन

      निशा यादव
        शोधार्थी, शा.क.रा.क. महाविद्यालय, ग्वालियर (म.प्र.)
      डॉ. कल्पना शर्मा
        विभागध्यक्ष, जे.सी. मिल कन्या स्नातकोत्तर महाविद्यालय, ग्वालियर (म.प्र.)

प्रस्तावना- महिला समाज का प्रतिबिंब है। समाज का स्वरूप और उसकी प्रगति महिलाओं की स्थिति, भूमिका तथा उसके योगदान से परिलक्षित होती है। देश, समाज व परिवार के निर्माण में उनका सक्रिय योगदान है। महिलाओं के बिना राष्ट्र निर्माण का सपना अकल्पनीय है। भारत वर्ष का इतिहास महिलाओं के बलिदान से रचा गया है। आदिकाल से समाज में महिलाओं की स्थिति में उतार चढ़ाव आते रहे हैं। फिर भी महिलाओं ने हमेशा परिवार व समाज का गौरव बढ़ाया है। प्रलय और निर्माण दोनों ही उसकी गोद में खेलते हैं। मनुस्मृति में लिखा है जहाँ स्त्रियों का सम्मान होता है वहां देवता निवास करते हैं। महिलाओं को यह सममान उनके त्याग, बलिदान, संरक्षण, प्रबंधन व समायोजन के फलस्वरूप प्राप्त हुआ है। प्राचीन काल से समाज में महिलाओं को लक्ष्मी, सरस्वती व दुर्गा के रूप में सम्मान प्राप्त हुआ है।